शनिवार 13 सितंबर 2025 - 18:13
क्यों इस्लाम ने गुलामी को तुरंत खत्म नहीं किया? एक यथार्थवादी विश्लेषण

हौज़ा / यह सवाल अक्सर उठता है कि इस्लाम ने गुलामी को तुरंत क्यों समाप्त नहीं किया। असलियत यह है कि इस्लाम ने गुलामी की शुरुआत नहीं की थी, बल्कि उस दौर की पूरी दुनिया गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई थी। फारस, रूम और मिस्र जैसे बड़े सभ्यताएँ भी गुलामों पर आधारित थीं। यहां तक कि आधुनिक पश्चिम ने भी लगभग डेढ़ सदी पहले जाकर गुलामी को आधिकारिक तौर पर समाप्त किया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार , यह सवाल अक्सर उठता है कि इस्लाम ने गुलामी को तुरंत क्यों समाप्त नहीं किया। असलियत यह है कि इस्लाम ने गुलामी की शुरुआत नहीं की थी, बल्कि उस दौर की पूरी दुनिया गुलामी की जंजीरों में जकड़ी हुई थी। फारस, रूम और मिस्र जैसे बड़े सभ्यताएँ भी गुलामों पर आधारित थीं। यहां तक कि आधुनिक पश्चिम ने भी लगभग डेढ़ सदी पहले जाकर गुलामी को आधिकारिक तौर पर समाप्त किया।

इस्लाम एक ऐसे माहौल में आया जहां गुलामों को केवल संपत्ति का हिस्सा माना जाता था और उन्हें मानव गरिमा से वंचित रखा जाता था। इस पृष्ठभूमि में इस्लाम ने एक समझदार और क्रमिक योजना के जरिए गुलामी के अंत का रास्ता बनाया।

गुलामी की वैचारिक जड़ का अंत:

इस्लाम ने नस्ल, रंग और वर्ग को श्रेष्ठता का आधार मानने से इनकार किया और तक़वा को श्रेष्ठता का मापदंड बनाया। जैसे हज़रत बिलाल हब्शी को अज़ान देने का मौका मिला, यह उस समय के व्यापक नस्लवाद के खिलाफ एक क्रांतिकारी कदम था।

गुलामी के फैलाव पर रोक:

इस्लाम ने गुलाम बनाने के सभी रास्ते बंद कर दिए। केवल युद्ध के बंदी ही गुलाम बन सकते थे, और वह भी तभी जब विरोधी पक्ष भी ऐसे व्यवहार करता हो।

स्वतंत्रता के लिए प्रोत्साहन:

कुरआन ने गुलामों की आज़ादी को एक नेक काम, इबादत और पापों के क्षमा के रूप में बताया। सूरा तौबा में ज़कात के खर्च में गुलामों को आज़ाद करना शामिल है, जबकि सूरा नूर ने ‘मुकातबा’ (गुलाम का अपनी मेहनत से आज़ादी खरीदना) का अधिकार दिया।

नबी और अहल ए बैत का व्यवहार:

हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम और अहल-ए-बैत ने गुलामों की आज़ादी को अपने जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाया। इमाम अली (अ.स.) ने अपनी कमाई से हजारों गुलामों को आज़ाद किया। इस्लाम ने गुलामों पर अत्याचार की सख्त मनाही की, यहाँ तक कि मामूली शारीरिक कष्ट भी उनकी आज़ादी का कारण बन सकता था।

निष्कर्ष

इस्लाम ने गुलामी को एक कड़वी ऐतिहासिक हकीकत माना, लेकिन इसे जड़ से खत्म करने के लिए वैचारिक, नैतिक और व्यावहारिक कदम उठाए। उसने गुलामी के विस्तार को रोका, आज़ादी को पूजा का कार्य बनाया और इंसानी गरिमा को केंद्र में रखा। इस तरह इस्लाम ने उस अंधकारमय परंपरा के अंत के लिए वह बुनियाद रखी जिसे दुनिया ने सदियों बाद अपनाया।

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